Friday, October 1, 2010

तप


उर धरी उमा प्रानपति चरना ,जाई बिपिन लागीं तप करना . अति सुकुमार न तनु तप जोगु ,पति पद सुमिरि तजेउ सब भोगु .नित नव चरन उपज अनुरागा ,बिसरी देह तपहिं मनु लागा .सम्बत सहस मूल फल खाए ,सागू खाई सत बरष गवांए . कछु दिन भोजन बारी बतासा ,किए कठिन कछु दिन उपवासा .बेल पाती महि परई सुखाई , तीनी सहस सम्बत सोई खाई .पुनि परिहरे सुखानेउ परना , उमहि नाम तब भयऊ अपरना . यदि आत्मा उमा परम भक्ति , परम श्रद्धा , परम विश्वास एवं अत्यंत भगवत प्रेम से ,सपूर्ण निष्ठा से तप करे तो परब्रह्म शिव का दर्शन होके ही रहेगा .आध्यात्मिक साधक की समस्या यह है की भगवान् के प्रति परम व्याकुलता कैसे हो .ऐसी व्याकुलता जेसे प्रेमी प्रेमिका में होती है वे परिवार समाज किसी की चिंता नहीं करते , जैसे धनिक धन के लिए , कामी काम के लिए , राजनीतिग्य राज सत्ता के लिए चाहे राष्ट्र समाज विश्व का सत्यानाश हो जाय . जब हमारा अन्तः करण भगवान् नारायण के लिए परम व्याकुल होगा श्री हरी के दर्शन हो जायेंगे . सब कै ममता ताग बटोरी मम पद बाँध प्रीत कै डोरी - अमित श्रीवास्तव अधिवक्ता सीतापुर

Friday, August 27, 2010

विश्वतोमुखः VISWATOMUKHAH

त्वम् स्त्री त्वम् पुमानसि कुमार त्वम् उत वा कुमारी ,त्वम् जीर्णो दण्डेन वंचसि त्वम् जातो भवसि विश्वतोमुखः -श्वेताश्वतरोपनिषद TWAM STRI TWAM PUMAANASI KUMAR TWAM UT VA KUMAARI ,TWAM JEERNO DANDEN VANCHASI TWAM JAATO BHAVASI VISWATOMUKHAH-SHWETASHWATROPNISHAD