Thursday, December 1, 2011

वैष्णवी ज्योति


तुम्हारा भोलापन मुझको सदा ऐसे लुभाएगा , तेरे अभिज्ञान में कैसे ये मेरा सत्य आएगा , स्रष्टि गाएगी एक दिन देख लेना मेरी तानों में , अमित वीणा का सम्मोहन कभी ऐसा ये छाएगा . प्रिये तुम प्यार से सुन लो गीत मैने जो है गाया , मेरे स्वप्नों में आ आ के तुम्हीं ने मुझको भरमाया , सतत मन साधना में रत अमित युग युग से कुछ ऐसा , सामने जो है आँखों के उसे मैं देख न पाया . कभी पतझड़ सा आभाषित कभी मधुमास है जीवन , कभी आरण्य दुर्गम है कभी मधुवन है ये जीवन , अनिर्वचनीय लीला है अमित अज्ञेय की ऐसी , कभी नश्वर जगत लगता कभी शाश्वत है ये जीवन . अनावृत सत्य जीवन का घटित हो जब भी जीवन में .विलक्षण रूप अंतरण द्रष्टिगोचर हो जीवन में .विहंग जब जब भी हृदयाकाश में उड़ता अमित स्वच्छंद .तुम्हीं तुम ही हो नैनों में तुम्हीं तुम ही हो जीवन में . पंचस्वर में प्रलापों में निशीथों में पुकारा है . मेरा मन मेरे वश में है कहाँ ये तो तुम्हारा है . तुमसे अभिभूत अंतर्मन अमित तेरा है अनुगामी . तुम्हारा ही तो सब कुछ है न कुछ अब तो हमारा है . वैष्णवी ज्योति की आभा रश्मि नीलम सी दर्शित है . विश्व का एक एक कण कण तेरी महिमा में मंडित है . अवतरण दिव्य हो तेरा अभीप्सा है अमित मन में . अहम् मेरा तुम्हारे नेह की आभा में खंडित है . कल्पना भावनाओं में तेरी मूरत बनाएगी . तेरा सारूप्य ही तो मैं हूं स्मृति कब ये आएगी . मन्त्र अष्टाक्षर जैसे प्रभावी अमित अर्चन में . प्रणय की ज्योति वैसे ही तेरा सामीप्य लाएगी . - गीत - अमित श्रीवास्तव अधिवक्ता , सदस्य सीतापुर बार एसोसिएशन , सदस्य हिंदी विधि प्रतिष्ठान , सदस्य हिंदी सभा , सीतापुर , उत्तर प्रदेश , भारत .

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