Saturday, April 11, 2015

नर्तन

***************************नर्तन ************************* सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नर्तन में तल्लीन है। यह विस्व परब्रह्म नारायण का विराट रूप है। यह आभाषित होता है की नारायण का शाश्वत नर्तन यह जगत है। जड़ भी नर्तन में तल्लीन है चेतन भी। प्रकृति भी नर्तन में है जीवात्मा भी नर्तन में सक्रिय है। भगवत लीला में कोई मूर्च्छा में तो कोई जाग्रत हो नर्तन कर रहा है। जो मूर्च्छा में है वो विषय कामनाओं के अनियंत्रित प्रवाह में गतिमान है। जो जाग्रत है वह स्वतंत्र हो आह्लाद में स्वयं के संकल्प से न की त्रिगुणमयी प्रकृति से प्रेरित हो , नृत्य में तल्लीन है। कोई संसार से विरक्त हो अध्यात्म साधना में रत है . कोई राग में विस्व मधुवन में रमण कर रहा है। परन्तु एक ऐसा भी है जो राग एवं वैराग से परे हो स्वयं के अमित आनंद सागर में आह्लादित होता हुआ स्वयं से सम्मोहित स्वयं के लिए परब्रह्म नारायण संग दिव्य नर्तन में तल्लीन है। कभी अनुराग का सागर कभी वैराग जीवन में। ये है परब्रह्म नारायण लीला अमित जीवन में। वो नर्तन में स्वयं तल्लीन हो जग को नचाता है। वो नट है उसकी माया ही भ्रमाती मन को जीवन में। दृश्य का ध्यान क्या होगा स्वयं का जब मैं ध्याता हूँ। स्वयं के विस्मरण में ही परम सत मैं ज्ञाता हूँ। पूर्ण होती है जिज्ञासा जहां जिज्ञासु हो सम्मुख । स्वयं से हो के सम्मोहित स्वयं के गीत गाता हूँ। - अमित श्रीवास्तव एडवोकेट सिविल कोर्ट सीतापुर प्रदेश भारत। २६१००१

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