Saturday, November 28, 2009
आराधिका
नैनों में नीर अंतर्मन में है वंदना . ह्रदय की धडकनों में होती है अर्चना .सोते रहोगे कब तक तुम क्षीर्सिन्धु में ब्रह्मांड के कण कण में गूंजी है वेदना .बरसात है जब जब हुई बरसे हंय मेरे नेन , घन घोर घटाओं में घनश्याम के बिना . मन मधुवन में तुम्हारी प्रतिमा हुई सर्जन , निराकार को साकार करने की कामना . अधरों से मधुर वाणी में प्रिय बोल दो कभी , युग युग से प्रतीक्सा में की है आराधना . हुआ कितने ही रूपों में आभास तुम्हारा , भरमाती रही तुम्हारे माधुर्य की त्रसना . आहटों में तुम्हारी लगता है ये मुझे , तुम्हारी भी मिलने की मुझसे है कामना . आराधिका है व्याकुल आरन्य में अमित , निर्मोही से मिलने की भटकाए भावना . - गीत लेखक -अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव सीतापुर उत्तर प्रदेश भारत .
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